विद्यार्थी जी....निश्चय ही कबीर ने आंखन देखी बात कही, शाश्वत का अनुभव किया. मेरा जोर बस इस बात पर है कि कबीर के शब्दों को आप जी नहीं सकते, उसकी गहराई में खड़े नहीं सकते; जब तक कि वो आपकी आंखन देखी ना हो जाए, उस शाश्वत से आपकी मुलाकात ना हो जाए.
आस- पास क्या दोस्त, सबसे पहले तो सत्य हमारे अन्दर ही है. लेकिन फिर वही बात, यह मान लेने या कह भर देने से क्या होगा? हमारा अनुभव तो हो.
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