In Search of Truth
Tuesday, February 1, 2011
सत्य तक पहुंचें कैसे?
सबसे पहली बाधा मैं देखता हूँ अहंकार की। अहंकार एक दीवार है, जिसके एक ओर आप होते हैं और दूसरी ओर सत्य। अहंकार की खाल ओढ़े हम कुछ भी देखते हैं, वह विकृत हो जाता है। हम अंधे होते हैं, सत्य के दर्शन करने में। अतः अहंकार जितना न्यून होगा, हम उतने निष्पक्ष और तटस्थ होंगे, उतनी हमारी दृष्टि व्यापक होगी और उतना ही समग्र होगा हमारा विश्लेषण। उतने ही सत्य के पास होंगे हम। एक निरहंकारी व्यक्ति अपने विचारों में ही बंद नहीं होगा। वह खुला होगा अन्य विचारों के प्रति भी। उसकी निष्ठा अपने अहंकार के प्रति न होकर, सत्य के प्रति होगी। यही निष्ठा उसे जिज्ञासु और विनम्र बनाये रखेगी।
दूसरी बात, हम जितने शांत और सजग होंगे, उतनी हमारी ग्राहकता होगी। सूक्ष्म तक हमारी पकड़ होगी। हमारी दृष्टि उतनी गहरी होगी और बुद्धि तीक्ष्ण व पैनी। तब सत्य स्वयं ही उद्घाटित होगा, सहज रूप से।
Monday, January 31, 2011
हमारा अनुभव तो हो....
आस- पास क्या दोस्त, सबसे पहले तो सत्य हमारे अन्दर ही है. लेकिन फिर वही बात, यह मान लेने या कह भर देने से क्या होगा? हमारा अनुभव तो हो.
Sunday, January 30, 2011
मृग और कस्तूरी कुंडल
एक और बात कहना चाहूंगा। किसी और ने जाना, कबीर ने, बुद्ध ने, महावीर ने....जो कुछ कहा उन्होंने, उनका अनुभव था। और हम बस उनके कहे को जानकर,रटकर खुद को बड़ा ज्ञानी समझते हैं। क्या इसका भी कोई मोल है? दो कौड़ी भी नहीं। हर किसी को सत्य की स्वयं तलाश करनी होगी। कम-से-कम अंतर्जगत के सत्य को तो स्वयं ही जानना होगा। कबीर बस इशारे कर सकते हैं, प्यास जगा सकते हैं। घट-घट के राम को जानना हो तो, खुद ही तलाश करनी होगी, सब कुछ दांव पर लगाना होगा, स्वयं की आहुति देनी होगी। कबीर के दोहे आपके अन्दर के कस्तूरी कुंडल से आपकी भेंट नहीं करा सकते। मृग को तो उसे ढूंढना ही होगा।
एक और बात...... बिलकुल हर विज्ञान, हर ज्ञान, हर कला, हर विधा, हर प्रणाली का उपयोग करना होगा, सत्य तक पहुँचने में।
आपके सुझाव, आपकी प्रतिक्रिया सदा आमंत्रित हैं।
Saturday, January 29, 2011
झूठ का कंटेंट
Friday, January 21, 2011
सच और झूठ
Thursday, January 20, 2011
सत्य क्या है?
अब ज़रा नीचे उतरें, परिभाषा को सामान्य करें, सत्य को शाश्वतता से न जोड़ें, तो कह सकते हैं, जिसका अस्तित्व कभी भी रहा हो, किसी एक क्षण भी, वह सत्य है।
Wednesday, January 19, 2011
सच की तलाश
सच की तलाश, सच की खोज यानी सत्यान्वेषण। हर व्यक्ति के अन्दर-बाहर यह तलाश चल रही है, उसे पता हो- न हो। हर व्यक्ति के अंदर की तड़प, उसके चित्त की बेचैनी के मूल में यही तलाश है। यह एक अस्तित्वगत खोज है। आप इस खोज के बिना नहीं हो सकते, क्योंकि आप चेतन हैं। यह तलाश आपकी चेतना के साथ ही आपको मिली है। अध्यात्म कहता है कि यह तलाश तभी पूरी होगी, जब व्यक्ति मिटेगा और परमात्मा प्रकट होगा। फिर कोई तड़प, बेचैनी और अशांति नहीं होगी। आनंद होगा, शांति होगी।
ब्लौगिंग की दुनिया में, मैं अपने सफ़र की शुरुआत करता हूँ। स्वयं की खोज, जगत की खोज, अस्तित्व की खोज, सत्य की खोज। यह खोज समग्र है, कोई भी विषय अछूता नहीं है। व्यक्ति, समाज, राष्ट्र, विश्व; स्थिति, घटना; अतीत, वर्तमान, भविष्य; जड़-चेतन; व्यक्ति के मन, क्रिया, व्यवहार; इन सबके भीतरी-बाहरी सत्य की खोज। हर पक्ष, हर पहलू, हर दृष्टिकोण से सच तक पहुँचने की आशा।