Tuesday, February 1, 2011

सत्य तक पहुंचें कैसे?

सत्य जितना सरल है, उतना ही जटिल। सरल इसलिए कि जो है, वो है। जटिल इसलिए कि जितने मस्तिष्क, जितनी दृष्टि; उतने सत्यों का दावा। हर व्यक्ति का अपना-अपना सत्य है। कम-से-कम वो तो अपने मत को सत्य ही मानते हैं। यही कारण है कि हर वक़्त सत्यों का उलझा संसार हमारे सामने खड़ा होता है। यह भी सच है कि सत्य तक पहुँचने के अलग-अलग मार्ग हो सकते हैं। प्रश्न उठता है कि एक सत्यसाधक में कौन-कौन से गुण हों, जिसके सहारे सत्य तक सही-सही पहुँचने की चरम सम्भावना हो?

सबसे पहली बाधा मैं देखता हूँ अहंकार की। अहंकार एक दीवार है, जिसके एक ओर आप होते हैं और दूसरी ओर सत्य। अहंकार की खाल ओढ़े हम कुछ भी देखते हैं, वह विकृत हो जाता है। हम अंधे होते हैं, सत्य के दर्शन करने में। अतः अहंकार जितना न्यून होगा, हम उतने निष्पक्ष और तटस्थ होंगे, उतनी हमारी दृष्टि व्यापक होगी और उतना ही समग्र होगा हमारा विश्लेषण। उतने ही सत्य के पास होंगे हम। एक निरहंकारी व्यक्ति अपने विचारों में ही बंद नहीं होगा। वह खुला होगा अन्य विचारों के प्रति भी। उसकी निष्ठा अपने अहंकार के प्रति न होकर, सत्य के प्रति होगी। यही निष्ठा उसे जिज्ञासु और विनम्र बनाये रखेगी।

दूसरी बात, हम जितने शांत और सजग होंगे, उतनी हमारी ग्राहकता होगी। सूक्ष्म तक हमारी पकड़ होगी। हमारी दृष्टि उतनी गहरी होगी और बुद्धि तीक्ष्ण व पैनी। तब सत्य स्वयं ही उद्घाटित होगा, सहज रूप से।

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