Sunday, January 30, 2011

मृग और कस्तूरी कुंडल

विद्यार्थी जी......कहां आप सामाजिक विज्ञान और उसकी अध्ययन प्रणालियों को कबीर से जोड़ रहे हैं। कबीर तो तभी पैदा होता है, जब कोई समाज के आडम्बरों और बंधनों से ऊपर उठ जाता है।
एक और बात कहना चाहूंगा। किसी और ने जाना, कबीर ने, बुद्ध ने, महावीर ने....जो कुछ कहा उन्होंने, उनका अनुभव था। और हम बस उनके कहे को जानकर,रटकर खुद को बड़ा ज्ञानी समझते हैं। क्या इसका भी कोई मोल है? दो कौड़ी भी नहीं। हर किसी को सत्य की स्वयं तलाश करनी होगी। कम-से-कम अंतर्जगत के सत्य को तो स्वयं ही जानना होगा। कबीर बस इशारे कर सकते हैं, प्यास जगा सकते हैं। घट-घट के राम को जानना हो तो, खुद ही तलाश करनी होगी, सब कुछ दांव पर लगाना होगा, स्वयं की आहुति देनी होगी। कबीर के दोहे आपके अन्दर के कस्तूरी कुंडल से आपकी भेंट नहीं करा सकते। मृग को तो उसे ढूंढना ही होगा।
एक और बात...... बिलकुल हर विज्ञान, हर ज्ञान, हर कला, हर विधा, हर प्रणाली का उपयोग करना होगा, सत्य तक पहुँचने में।
आपके सुझाव, आपकी प्रतिक्रिया सदा आमंत्रित हैं।

1 comment:

  1. वही तो मैं कहना चाहता हूँ कि सत्य आपके आस-पास ही है उसके लिए भटकने कि ज़रुरत नहीं है. और एक बात आपको बता दूँ कि कबीर शाश्वत हैं वो यही कहते हैं कि "तू कहता काग़ज़ कि लेखी मैं कहता आंखन कि देखी."

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