Friday, January 21, 2011

सच और झूठ

सच का अस्तित्व है, झूठ का भी अस्तित्व है। दोनों ही अस्तित्व के अन्दर आते हैं। झूठ का अस्तित्व भ्रम, भ्रान्ति और कल्पना पर टिका होता है। उस भ्रम और कल्पना का अस्तित्व तो है, परन्तु ऐसे भ्रम और कल्पना की विषयवस्तु का स्वयं में कोई अस्तित्व नहीं होता। झूठ का कंटेंट तो असत्य होता है, पर झूठ का होना तो सत्य है।

1 comment:

  1. कुछ लोगों का कहना है कि आपने जो लिखा है वो तो सामान्य बात है फिर इतने गहरे शब्दों के इस्तेमाल की क्या ज़रुरत. किन्तु मै कहता हूँ आपने बहुत सही लिखा है. क्योंकि छोटी बात कह देना भर बड़ी बात नहीं है पाठक के लिए विषयवस्तु देना भी लेखक का ही कर्तव्य है. आप सत्य के तलाश में लगे रहिये जो आपके आस-पास ही है, लेकिन आपकी आध्यात्मिक आँखें जगत में व्याप्त सत्य का अन्वेषण करने में थोडा अक्षम प्रतीत हो रही हैं. अतः आपसे अनुरोध है कि अपने सत्य की इस खोज में सामाजिक विज्ञान की भी अध्ययन प्रणालियों का उपयोग करें. क्योंकि कबीर दास ने लिखा है, " कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूंढें वन माहिं.
    ऐसे घट-घट राम हैं, दुनिया जाने नाहिं.

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